उत्तराखंड HC का फैसला पलटा, सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दावा करना मौलिक अधिकार नहीं: SC

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दावा करना मौलिक अधिकार नहीं है. लिहाजा कोई भी अदालत राज्य सरकारों को एससी और एसटी वर्ग के लोगों को आरक्षण देने का निर्देश नहीं जारी कर सकती है. आरक्षण देने का यह अधिकार और दायित्व पूरी तरह से राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर है कि उन्हें नियुक्ति या पदोन्नति में आरक्षण देना है या नहीं. हालांकि राज्य सरकारें इस प्रावधान को अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं.


जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने उत्तराखंड सरकार के लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता (सिविल) के पद पर पदोन्नति में एससी और एसटी को आरक्षण से संबंधित मामलों को एक साथ निपटाते हुए यह निर्देश दिया है. बेंच ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए ये व्यवस्था दी है. 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि ओबीसी के लिए तय क्रीमी लेयर का कॉन्सेप्ट एससी/एसटी के लिए भी नियुक्ति और तरक्की यानी प्रोमोशन में लागू होगा.


 

बता दें, प्रमोशन में आरक्षण और सीधी भर्ती में पुराने रोस्टर को लागू करने की मांग को लेकर देहरादून में पिछले महीने प्रदेश भर से आए हजारों एसटी-एससी कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ सचिवालय का घेराव किया था. प्रदेश भर से आए अनुसूचित जाति के अनेक संगठनों से जुड़े लोगों ने राजधानी देहरादून में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और अपनी मांगें न माने जाने की सूरत में सामूहिक धर्म परिवर्तन की भी चेतावनी दी.